पंडितों की दक्षिणा में करके काट छांट, यात्रा के अतिरिक्त मात्र चौदह रुपये ही बच पाए थे जिसने उसके कदम मदिरालय की ओर उठाए थे. जाने वाला लौट के तो आएगा नही, यही सोच कर उतार लिया सीने में कड़वा पानी.....स्मृति में विगत के चित्र उभरने लगे जब मरते हुए बाप ने अपनी फटी हुई जेब से एक सौ इक्यावन रुपये निकाल कर उसे थमाए थे, कितना दूरदृष्टा था बापू, जानता था जो जीते जी उसे रोटी ना खिला सके वो मरने के बाद पित्र ऋण क्या चुकाएँगे, इनके सहारे रहा तो मेरी अस्थियों को कुत्ते ही चबाएँगे .....
Friday, June 17, 2011
Some-OLDIES-> My poem written in 11th standard.
पंडितों की दक्षिणा में करके काट छांट, यात्रा के अतिरिक्त मात्र चौदह रुपये ही बच पाए थे जिसने उसके कदम मदिरालय की ओर उठाए थे. जाने वाला लौट के तो आएगा नही, यही सोच कर उतार लिया सीने में कड़वा पानी.....स्मृति में विगत के चित्र उभरने लगे जब मरते हुए बाप ने अपनी फटी हुई जेब से एक सौ इक्यावन रुपये निकाल कर उसे थमाए थे, कितना दूरदृष्टा था बापू, जानता था जो जीते जी उसे रोटी ना खिला सके वो मरने के बाद पित्र ऋण क्या चुकाएँगे, इनके सहारे रहा तो मेरी अस्थियों को कुत्ते ही चबाएँगे .....
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Mysterious Life
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